lunedì 15 ottobre 2018

धर्मांतरण के कारण हुआ था विश्व हिंदू परिषद का उदय

जनता पार्टी के विघटन के बाद साल 1980 में भारतीय जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रूप में फिर से सामने आया.
तभी उसने गांधीवादी समाजवाद को अपना मुख्य सिद्धांत बनाया.
इस पर कुछ समय के लिए संघ के प्रमुख बालासाहेब देवरस विचलित भी हुए.
उन्हें लगा कि पार्टी शायद अपना हिंदुत्व का आधार छोड़ रही है.
उन्होंने हिंदू विचारधारा को जीवित रखने के लिए विश्व हिंदू परिषद का सहारा लेने की रणनीति बनाई.
इसका मुख्य कारण था साल 1981 में तमिलनाडु के गाँव मीनाक्षीपुरम में सैकड़ों दलितों का इस्लाम में धर्मांतरण था.
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में संघ ने भारतीय जनता पार्टी का साथ न दे कर कांग्रेस का साथ दिया जिसकी वजह से कांग्रेस 400 से भी अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही.
और भारतीय जनता पार्टी को मात्र दो सीटों से संतोष करना पड़ा.
शायद यही वजह थी कि पार्टी ने हिंदू समाज को जागृत करने के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू करने का फ़ैसला लिया.
शाहबानो मामले में राजीव गाँधी सरकार द्वारा लिए गए कदम ने उन्हें मतदाताओं के बीच अलोकप्रिय किया और भारतीय जनता पार्टी को अपनी जड़ें जमाने में मदद मिल गई.
उस के बाद से संघ परिवार ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. नब्बे के दशक के बाद से आरएसएस की गिनती दुनिया के सबसे बड़े ग़ैरसरकारी संगठनों में होने लगी.
एक अनुमान के अनुसार इस समय आरएसएस के सदस्यों की संख्या 15 से 20 लाख के बीच है.
इसकी 57,000 शाखाओं की रोज़ बैठक होती है. इसके अलावा 14000 साप्ताहिक और 7000 मासिक शाखाएं भी आयोजित की जाती हैं.
इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 6000 पूर्णकालिक सदस्य भी हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बढ़ चढ़ कर प्रभावित लोगों की मदद की है. उत्तराखंड की विनाशकारी बाढ़ हो या केरल में आई हाल ही की भीषण बाढ़, स्वयंसेवकों ने आगे बढ़ कर मुसीबत में फंसे लोगों की मदद की है.
लेकिन आरएसएस पर किताब लिखने वाले शम्सुल इस्लाम का मानना है कि दलितों या महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर आरएसएस की चुप्पी रहस्यमयी है. इस बात के भी बहुत कम उदाहरण मिलते हैं कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में वो सिखों की मदद के लिए आगे आए हों.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बहुचर्चित किताब 'द आरएसएस अ व्यू टू द इनसाइड' लिखने वाले वॉल्टर एंडरसन बताते हैं, "युवाओं में आरएसएस की लोकप्रियता का मुख्य कारण भारतीय समाज का आधुनिकीकरण के साथ साथ परंपरागत मूल्यों को भी उतना ही महत्व दिया जाना है. लेकिन इसके बावजूद आरएसएस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, इन युवाओं के समर्थन को बरकरार रखना."
आरएसएस पर चर्चित किताब 'लॉस्ट इयर्स ऑफ़ आरएसएस' लिखने वाले संजीव केलकर कहते हैं, "एक आधुनिक संगठन के सीईओ की पूरी कोशिश होती है कि संगठन के अंदर इस तरह का सकारात्मक माहौल बने कि उसके सदस्यों को काम करने में मज़ा आए. लेकिन संघ की कठोर हाइरार्की और स्थिर कार्य पद्धति के कारण जल्दी ही उनका मोह भंग हो जाता है."धुनिक युग में वही संगठन फलते फूलते हैं जहाँ ज्ञान सर्वोपरि हो और जहाँ सभी प्रासंगिक सूचनाओं के विष्लेषण के लिए जहाँ तक संभव हो सूचना तकनीक का इस्तेमाल होता हो.
संजीव केलकर कहते हैं, "आरएसएस के सबसे बड़े पैरोकार भी मानेंगे कि ये कभी भी ज्ञान केंद्रित संगठन नहीं रहा. उनको इस बात का अंदाज़ा ही नहीं है कि ज्ञान आवश्यकता केंद्रित गुण नहीं है. ज्ञान को ज्ञान के लिए अर्जित किया जाना चाहिए जिसके बिना साधारण होना एक आदर्श बन जाएगा. आरएसएस को प्रभावशाली रणनीति बनाने के लिए सूचना तकनीक के इन औज़ारों का इस्तेमाल करना चाहिए."
"आरएसएस के सामने एक और लक्ष्य होना चाहिए और जिसकी तरफ़ उनका ध्यान भी तक बिल्कुल नहीं गया है, वो है समाज के सक्षम और बौद्धिक लोगों को अपने साथ जोड़ना. जब तक देश के चोटी के बुद्धिजीवी, लेखक, वैज्ञानिक, अद्ध्येता और ओपिनियन मेकर उससे नहीं जुड़ेगे, उसकी सामाजिक स्वीकार्यता पर सवाल उठाए जाते रहेंगे."
संघ के भीतर उसके बाहरी स्वरूप में बदलाव के बारे में सोचने पर भी एक तरह की पाबंदी रही है.
संघ की शाखाओं में देशभक्ति के गीत और पुराने संस्कृत श्लोकों को गाते हुए बोरिंग ड्रिल (लाठी या लाठी के बिना भी) युवकों को बहुत दिनों तक आकर्षित नहीं कर सकेगी.
जब तक संघ के काम करने के तरीके में आधुनिक विचार और दुनिया भर के युवाओं की बदलती सोच का पुट नहीं होगा, युवा उसकी तरफ. आकर्षित हो भी जाएं, लेकिन लंबे समय तक उसके साथ जुड़े नहीं रह पाएंगे.

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